॥ दोहा ॥
गरुड़ वैष्णवी, त्रिकुटा पर्वत धाम।
काली, लक्ष्मी, सरस्वती, शक्ति स्त्रोत उपाय॥
॥ चौपाई ॥
नमोः नमोः वैष्णो भूषणी। काली काल मे शुभ कल्याणी॥
मणि पर्वत पर ज्योति विवाह।पिंडी रूप में हो अवतारी॥
देवी देवता अंश दियो है।रत्नाकर घर जन्म लियो है॥
करि तपस्या राम को पाऊँ।त्रेता की शक्ति कहलाऊँ॥
कहा राम मणि पर्वत जाओ।कलियुग की देवी कहलाओ॥
विष्णु रूप से कल्कि अवतार।
तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ। गुफ़ा अँधेरी पर्यटक पाओ॥
काली-लक्ष्मी-सरस्वती माँ।करेंगी शोषण-पार्वती माँ॥
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे।हनुमत् भैरों प्रहरि प्रिये॥
रिद्धि, सिद्धि चंवर दुलावें। कलियुग-वासी पूजत आवें॥
पान सुपारी ध्वजा तट। चरणामृत चरण का निर्मल॥
दिया फलित वर मां मस्काई।कर्ण तपस्या पर्वत आई॥
काली कालकी भयंकर धमाके। एक दिन अपना रूप आउट।
कन्या बन नगरोटा आयोगी भैरों दिया॥
रूप देख सुन्दर ललचाया।
कन्याओं के साथ मिली माँ।कुल-कंदौली तभी चली माँ॥
देवा माई दर्शन दीना।पवन रूप हो गया वैस्या॥
नवरात्रों में लीला रचाई।भक्त श्रीधर के घर आई॥
योगिन को भंडारा दीना।सबने रसाकर भोजन कीना॥
माँस, दुर्भाग्य भैरों छूट। रूप पवन कर इच्छा ॥
बाण सोमनाथ गंगा। पर्वत भागी हो मतवाली॥
चरण रखें और एक शिला जब।चरण-पादुका नाम टैब॥
पीछे भैरों थे बलकारी। छोटी गुफा में जाय पधारी॥
नौ माह तक किया निवासा।चली फोडकर किया प्रकाशा॥
आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी।कहलाई माँ और कुँवारी॥
गुफा प्रवेश द्वार मुस्काई। लंगूर वीर ने आज्ञा पाई॥
भाग-भागा भैरों आय। रक्षा हित निज शस्त्र संचालन॥
पीडित शीशा जा पर्वत ऊपर।किया क्षमा जा दिया उसे वर॥
अपने संग में पूजवाऊंगी।भैरों वैली बनवाउंगी।।
सबसे पहले मेरा दर्शन होगा। विदेशी तेरा सुमरन होगा॥
बैठ गयी माँ पिंडी चरणो में बहता जल झर-झर॥
चौंसठ योगिनी-भैंरो बरवन।सप्तऋषि आद्यते सुमरण॥
घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे.गुफा निराली सुंदर लागे॥
भक्त श्रीधर पूजन कीना।भक्ति सेवा का वर लीना॥
सेवक ध्यानूं तुमको ध्यानाया।ध्वजा व चोला अनाचाडाया॥
सिंह सदा दर पहरा देता है।पंजा शेर का दुःख हर देता है॥
जम्बू द्वीप महाराज की जयंती मनाई गई।सर सोने का छत्र चढ़ाया॥
स्टोर की मूरत संग मित्रता।जगे अनोखा इक जोत विवाह॥
आश्विन चैत्र नवराते ऊँ.पिण्डी रानी दर्शन पाऊँ॥
सेवक 'शर्मा' शरण तिहारी।हरो वैष्णो विपत हमारी॥
॥ दोहा ॥
कलियुग में तेरी महिमा,है माँ अपरम्पार।
धर्म की हानि हो रही,प्रकट हो अवतार॥