॥दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मन सिद्ध करि, पुरुवहु मेरी आस॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मन सिद्ध करि, पुरुवहु मेरी आस॥
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॥सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदम्बिका॥
॥सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदम्बिका॥
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॥चौपाई॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोहि॥
तुम समान नहीं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा। वास्तव में तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी वेबसाइट॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोहि॥
तुम समान नहीं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा। वास्तव में तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी वेबसाइट॥
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जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारि। सुधि लीजै अपराध बिसारि॥
कृपया दृष्टि चितव्वो मम ओरि। जगजननी विनती सुन मोरी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारि। सुधि लीजै अपराध बिसारि॥
कृपया दृष्टि चितव्वो मम ओरि। जगजननी विनती सुन मोरी॥
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ज्ञान बुद्धि जय सुख के दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्नों में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनी दासी॥
जब-जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्नों में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनी दासी॥
जब-जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
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स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेऊ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जेनपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकहिं॥
भिन्न तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन के स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
तब तुम प्रगट जेनपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकहिं॥
भिन्न तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन के स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
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मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन चाहता वाञ्छित फल पाया॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भाईचारे मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बूबाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन चाहे पावै फल सोई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भाईचारे मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बूबाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन चाहे पावै फल सोई॥
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त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढाई पावै। ध्यान ध्यान सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहिं अरु सम्पति हीना। अंध बधिर कोधि अति दीना॥
जो चालीसा पढाई पावै। ध्यान ध्यान सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहिं अरु सम्पति हीना। अंध बधिर कोधि अति दीना॥
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विप्र बोलाय कै पाठ करावै। सच्चा दिल में कभी ना लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख अधिकार बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख अधिकार बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
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नित्य पाठ करै मन माही। उन सम कोई जग में कहूँ नहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान दो॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्याप्त हो गुण खानी॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान दो॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्याप्त हो गुण खानी॥
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तुम्म्हरो तेज प्रताप जग माहीं। तुम सम कोऊ प्रिय कहुँ नहीं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट कटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अचत् दुःख सहते भारी॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट कटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अचत् दुःख सहते भारी॥
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नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रूप चतुर्भुज धारण करके। कष्ट मोर अब करहु सेवा॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥
रूप चतुर्भुज धारण करके। कष्ट मोर अब करहु सेवा॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥
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॥दोहा॥
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी, हरो वेगी सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी, हरो वेगी सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
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