॥ दोहा ॥
गणपति गिरजा पुत्र को, सुमिरौं बारम्बार।
हाथ जोड़ बिनती करूँ,शरद नाम आधार॥
॥ चौपाई ॥
जय जय गोरख नाथ अविनाशी।कृपा करो गुरु देव प्रकाशी॥
जय जय जय गोरख गुण ज्ञानी।इच्छा रूप योगी भूषणी॥
अलख निरंजन तुम्म्हरो नामा। सदा करो भक्तन हित काम॥
नाम लिपि जो कोई गावे।जन्म जन्म के दुःख मिट जावे॥
जो कोई गोरख नाम सुनावे।भूत पिशाच निकट नहीं आवे॥
ज्ञान अध्ययन योग से पावे।
निराकार तुम हो निर्वाणी।महिमा तारा वेद न जानि॥
घाट घाट के तुम अन्तर्यामी।सिद्ध चौरासी करे प्रणाम॥
भस्म अंग गल नाद विराजे।जता शीश अति सुन्दर साजे॥
तुम बिन देव और नहीं दूजा।देव मुनि जन करो पूजा॥
चिदानंदसंतान हितकारी।मंगल करुण अमंगल हारी॥
पूर्ण ब्रह्म सकल घाट वासी। गोरख नाथ सकल प्रकाशी॥
गोरख गोरख जो कोई ध्यावे।ब्रह्म रूप के दर्शन पावे॥
शंकर रूप धर डमरू बाजे।कानन कुंडल सुंदर साजे॥
नित्यानंद है नाम बाइबिल।असुर मार भक्तन रखवारा॥
अति विशाल है रूप मित्र। सुर नर मुनि पावै न पारा॥
दीन बन्धु दीनन हितकारी।हरो पाप हम शरण जयन्ती॥
योग युक्ति में हो प्रकाशा।सदा करो संतन तन वासा॥
प्रातःकाल ले नाम बाइबिल।सिद्धि बढ़ै अरु योग प्रचारा॥
हठ हठ हठ गोरक्ष हठीले।मार मार वैरी के कीले॥
चल चल चल गोरख विकारला।दुश्मन मार करो बेहाला॥
जय जय जय गोरख अविनाशी।अपने जन की हरो चौरासी॥
अचल अगम है गोरख योगी।सिद्धि देवो हरो रस भोगी॥
काटो मार्ग यम को तुम आई। तुम बिन मेरा कौन सहाई॥
अजर-अमर है विवाह देहा। सनकादिक सब जोरहिं नियो॥
कोतिन रवि सम तेज लोक।है प्रसिद्ध जगत उजियारा॥
योगी लाखे विवाह माया। पार ब्रह्मा से ध्यान॥
ध्यान विद्या जो कोई लावे।अष्टसिद्धि नव निधि घर पावे॥
शिव गोरख है नाम मित्र।पापी दुष्ट अधम को तारा॥
अगम अगोचर निर्भय नाथा। सदा रहो सन्तन के साथा॥
शंकर रूप अवतार। गोपीचन्द्र भर्तृहरि को तारा॥
सुन लीजो प्रभु अर्ज हमारी। कृपासिंधु योगी ब्रह्मचारी॥
पूर्ण आस दास कीजे।सेवक जन ज्ञान को दीजे॥
पतित पावन अधम अधारा।तिनके तुम लेत अवतारा॥
अलख निरंजन नाम बाइबिल। अगम पंथ जिन योग प्रचारा॥
जय जय जय गोरख भगवान सदा करो भक्तन कल्याणा॥
जय जय जय गोरख अविनाशी।सेवा करै सिद्ध चौरासी॥
जो ये पढि़ए गोरख चालीसा।होय सिद्धसाकिता जगदीशा।।
हाथ से दोस्ती ध्यान लगायावे।और श्रद्धा से दोस्ती सिखायावे॥
बारह पाठ पढ़ै नित जोई।मनोकामना पूर्ण होइ॥
॥ दोहा ॥
सुने सुनावे प्रेम वश,पूजे अपने हाथ।
मन चाह सब चाह,पूरे गोरखनाथ॥
अगम अगोचर नाथ तुम, पारब्रह्म अवतार।
कानन कुंडल सिर जटा,अंग विभूति अपारा॥
सिद्ध पुरुष योगेश्वरो,दो मुझको उपदेश।
हर समय सेवा करूँ,सुबह शाम ऑर्डर॥