॥ दोहा ॥
अलख निरंजन आप हैं,निर्गुण सगुण हमेश।
नाना विधि अवतार धर,हरते जगत कलेश॥
बाबा गंगारामजी,हुए विष्णु अवतार।
चमत्कारी लाख आपका,गूंज उठा जयकार॥
॥ चौपाई ॥
गंगाराम देव हितकारी।वैश्य वंश प्रकटे अवतारी॥
पूर्वजन्म फल अमित रहेउ।धन्य-धन्य पितु मातु भयेउ॥
उत्तम कुल उत्तम सतसंग।पावन नाम राम अरू गंगा॥
बाबा नाम परम हितकारी। सत सत वर्ष समुंगलकारी॥
जन्महिं जन्म देह सुध नाहिं।तप्त तपत पुनि भयेउ गुसाईं॥
जो जन बाबा में चित लावा।तेहिं प्रताप अमर पद पावा॥
नगर झुंझुनूं धाम तिहारो। शरणागत के संकट तारो॥
धरम सब सुख बिसाते।दिन हीन लखि हृदय स्थान॥
एहि विधि चालीस वर्ष बिताये।अन्त देह तजि देव कहाये॥
देवलोक भई कंचन काया।तब अवशेष सन्देश पठाया॥
निज कुल जन को स्वप्न दिखावा।भावी करम जतन बतावा॥
आपन सुत को दर्शन दीन्हों।धरम है सब करज कीन्हों॥
नभ वाणी जब हुई निशा में।प्रकट भई छवि पूर्व दिशा में॥
ब्रह्मा विष्णु शिव गणेश सहित।जिमि अवशेष प्रकटेऊ सब ईशा॥
चमत्कार एहि भाँति दिखाया।अन्तर्ध्यान भई सब माया॥
सत्य वचन सुनि करहिं विचारा। मन महँ गंगाराम पुकारा॥
जो जन करै मनौती मन में।बाबा पीर हरिन पल छन में॥
ज्यों निज रूप दिखाहिं सांचत्यों त्यों भक्तवृन्द तेहिं जांचा॥
उच्च मनोरथ शुचि आचारी।राम नाम के अटल पुजारी॥
जो नित गंगाराम कहे।बाबा दुःख से ताहिं उबरे॥
बाबा में जिन्ह चित्त लगावा।ते नर लोक सकल सुख पावा॥
परहित बसहिं जाहिं मन मंहि।बाबा बसहिं ताहिं तन मंहिं॥
धरहिं ध्यान रावरो मन में। सुखसंतोष लहै न मन में॥
धर्म वृक्ष जेहि तन मन सींचा। पार ब्रह्म तेहि निज में उगे॥
गंगाराम नाम जो गावे।लहि बैकुंठ परम पद पावे॥
बाबा पीर हरहिं सब भाँति।जो सुमरे निश्छल दिन राती॥
दीन बन्धु दीनन हितकारी।हरौ पाप हम शरण तिहारी॥
पंचदेव तुम पूर्ण प्रकाशा। सदा करो संतन मंह बसा॥
तारण तरण गंगा का पानी।गंगाराम उभय सुनिशनि॥
कृपासिंधु तुम हो सुखसागर।सफल मनोरथ करहु कृपाकर॥
झुंझुनूं नगर बड़ी बड़ी भागी।जहां जन्में बाबा अनुरागी॥
पूर्ण ब्रह्म सकल घाटवासी। गंगाराम अमर अज्ञानी॥
ब्रह्म रूप देव अति भोला। कानन कुंड मुकुट अमोला॥
नित्यानंद तेज सुख रासी।हरहु नाशतन करहु प्रकाशसी॥
गंगा दशहरा लाघहिं मेला।नगर झुंझनूं मांह शुभ बेला॥
जो नर कीर्तन करहिं छवि। छवि निरखि मन हर्ष अपारा॥
प्रातःकाल ले नाम लड़की। चौरासी का हो निस्तारा॥
पंचदेव मंदिर स्वामी। दर्शन हित भगतन का तांता॥
जय श्री गंगाराम नाम की।भवतारण तारि परम धाम की॥
'महावीर' धर ध्यान पुनीना। विरचेउ गंगाराम सुगीता॥
॥ दोहा ॥
सुने सुनावे प्रेम से, कीर्तन भजन सुनाम।
मन चाह सब चाही,पुरी गंगाराम॥