Stunning illustration of Lord Krishna holding a flute in a serene forest setting with vibrant flowers, showcasing Shri Gopala Chalisa

श्री गोपाल चालीसा | श्री गोपाल चालीसा

॥ दोहा ॥
श्री राधापद कमल रज, सिर धरि यमुना शीतल।

वारणो चालीसा सरस, सकल सुमंगल मूल॥

॥ चौपाई ॥

जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी।दुष्ट दलन लीला अवतारी॥
जो कोई तुम्हारी लीला गावै।बिन श्रम सकल पदारथ पावै॥

श्री वासुदेव देवकी माता। प्रकट भये संग हलधर भ्राता॥
मथुरा सों प्रभु गोकुल आये।नंद भवन में बजत बढ़ाये॥

जो विष देन पूतना ऐसो मुक्ति दै धाम पाटै॥
तृणावर्त राक्षस संहार्यौ।पग खण्डय सकटासुर मारयौ॥

खेल खेल में माटी खो.मुख में सब जग दियो दिखाई दिया॥
गोपीन घर घर माखन खायो।जसुमति बाल केलि सुख पायो॥

ऊखल सों निज अंग बंधाई।यमलार्जुन जड़ योनिजन्तै॥
बका असुर की चोंच विदारी।विकट अघासुर दियो संहारी॥

ब्रह्मा बालक वत्स चुराये। मोहन को मोहन हित आये॥
बाल वत्स सब बने मुरारी।ब्रह्मा विनायक करी तब भारी॥

काली नाग नाथी भगवाना।दावानल को किन्हों पना॥
साखं संग खेलत सुख पायो।श्रीदामा निज कन्ध चढ़ायो॥

चिर हरण करि सिखै नख पर गिरवर लियो उकेये॥
दर्श यज्ञ पत्नीं को दीन्हों।राधा प्रेम सुधा सुख लीन्हों॥

नन्दहिं वरुण लोक सों लाये।ग्वालन को निज लोकये॥
शरद चन्द्र लक्खी वेणु बाजै।अति सुख दीन्हों रसाई॥

ड्रैगन सों पितृ चरणस्थायो।शंखचूड़ को मूड़ गिरायो॥
हने अरिष्टा सुर अरु केशी।व्योमासुर मारयो छल वेशी॥

व्याकुल ब्रज तजि मथुरा आये।मारि कंस यदुवंश बसये॥
माता पिता की बंदिस्थायी।संदीपनि गृह विद्या पाई॥

पुनि पठयौ ब्रज ऊधौ ज्ञानी।प्रेम देखि सुधि सकल डूबनि॥
कीन्हीं कुबरी सुंदर नारी।हरि लाये रुक्मिणी सुकुमारी॥

भौमासुर हनि भक्तजनये।सुरन जीति सुरतरु मही लाये॥
दंतवक्र शिशुपाल संहारे।खग मृग नृग अरु बधिक उरगे॥

दीन सुदामा धनपति कीन्हों। पारथ रथ सारथी यश लीन्हों।
गीता ज्ञान सिखावन हारे।अर्जुन मोह मोह वन हारे॥

केला भक्त बिदुर घर पायो। युद्ध महाभारत रचवायो॥
द्रुपद सुता को चीर खण्डयो।गर्भ परीक्षित जरत बचायो॥

कच्छ मच्छ वराह अहिषा। बावन कल्कि बुद्धि मुनीषा॥
ह्वै नृसिंह प्रह्लाद उबार्यो।राम रूप धरि रावण मारयो॥

जय मधु कैटभ दैत्य हनैया।अम्बरीय प्रिय चक्र धारैया॥
बेआध अजामिल दीन्हें तारी। शबरी अरु गणिका सी नारी॥

गरुड़ासन गज फन्द निकन्दन।देहु दर्श ध्रुव नयनानन्दन॥
देहु शुद्ध संतान कर संगा।बाधाय प्रेम भक्ति रस रंगा॥

देहु दिव्य वृन्दावन बासा। छुटै मृग तृष्णा जग आशा॥
तुम्हरो ध्यान धरत शिव नारद।शुक सनकादिक ब्रह्म विषारद॥

जय जय राधारमण कृपाला।हरण सकल संकट भ्रम जाला॥
बिनसैं बिघन रोग दुःख भारी।जो सुमरैं जगपति गिरधारी॥

जो सत बार पढ़ै चालीसा।देहि सकल बाँछित फल शीशा॥

॥छन्द ॥

गोपाल चालीसा पढ़ै नित,नेम सों चित्त लावै।
सो दिव्य तन धरि अन्त महँ, गोलोक धाम सिधावै॥
संसार सुख असंभव सकल, जो भक्तजन सन महँ छाँह।
'जयरामदेव' सदा सो, गुरुदेव दया सों लहें॥

॥ दोहा ॥

प्रणत पल शरण शरण, करुणा-सिंधु ब्रजेश।
चालीसा के संग मोहि, अपनवहु प्राणेश॥
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