॥ श्री राम रघुपति आरती ॥
बंदौं रघुपति करुणा निधान।
जाये छूटै भव-भेद ज्ञान॥
रघुबंस-कुमुद-सुखप्रद निसस।
सेवत पद-पंकज अज-महेस॥
निज भक्त-हृदय पथोज़-भृंग।
लावण्यबपुष अग्नित अनंग॥
अति प्रबल मोह-तम-मरतण्ड।
अज्ञान-गहन- पावक-प्रचण्ड॥
अभिमान-सिन्धु-कुम्भज उदार।
सुररंजन, भंजन भूमिभार॥
रागादि- सर्पगन पन्नगारी।
कन्दर्प-नाग-मृगपति, मुरारि॥
भव-जलधि-पोत चरनारबिन्द।
जानकी-रावण आनन्द खण्ड॥
हनुमंत प्रेम बापी मेराल।
निष्काम कामदुख गो मित्रो॥
त्रैलोक-तिलक, गुणघन राम।
कह तुलसीदास विश्राम-धाम॥