॥ श्री राम रघुवीर आरती ॥
ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन।
हरण तेलुगुंद गोविंद आनंदघन॥
ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥
अचर चर रूप हरि, सर्वगत, सर्वदा
बसत, इति बासना धूप दीजै।
दीप निजबोधगत कोह-मद-मोह-तम
प्रौढ़ अभिमान चित्तवृत्ति छिजै॥
ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥
भाव अतिशय विशेष प्रवर नैवेद्य शुभ
श्रीमन् परम सन्तोषकरि।
प्रेम-ताम्बूल गत शूल सन्शय सकल,
विपुल भव-बासना-बीजहारी॥
ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥
अशुभ-शुभ कर्म घृतपूर्ण दशावर्तिका,
त्याग पावक, सतोगुण प्रकाशन।
भक्ति-वैराग्य-विज्ञान दीपावली,
अर्पि निराजनं जगनिवासन॥
ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥
बिमल हृदय-भवन कृत शांति-पर्यंक शुभ,
शयन विश्राम श्रीरामराय।
क्षमा-करुणा प्रमुख तत्र परिचारिका,
यत्र हरि तत्र नहिं भेद-माया॥
ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥
आरती-निरत सनकादि, श्रुति, शेष, शिव,
देवऋषि, पूर्णमुनि तत्त्व-दर्शि।
करै सोइ तराई, परिहारै कामदि मल,
वदति इति अमलमति दास तुलसी॥
ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥