॥ દોહા ॥
સુવન કેહરી જેવર,સુत महाबली रणधीर।
बंदीौं सुत रानी बाछला,विपत निवारण वीर ॥
જય જય જય ચૌહાણ,વન્સ ગુગા વીર અનૂપ.
अनंगपाल को जीतकर, आप बने सुर भूप ॥
॥ चौपाई ॥
જય જય જય જહર રણધીરાપર। દુઃખ ભંજન બગીચા વીરા ॥
ગુરુ गोरख का है वरदानी। જાહરવીર જોધા લાસની ॥
ગૌરવ મુખ્ય મહા વિશાળ।માથે મુક્ત ઘુંઘરાલે બાલા ॥
कांधे धनुष गले तुलसी माला।कमर कृपाण रक्षा को डाला॥
જન્મેં गूगावीर जाना जग।ईसवी सन हजार दरमियाना ॥
बल सागर गुण निधि कुमारा।दुखी जनों का बना सहारा।
बागड़ पति बाछला नन्दन।जेवर सुत हरि भक्त निकन्दन।
जेवर राव का पुत्र कये।माता पिता के नाम बढये ॥
पूरन हुई कामना सारी।जिसने विनती करी इच्छा ॥
सन्त उभिभक्त असुर संहारे।
गूगावीर की अजब कहानी।जिसको ब्याही श्रीयल रानी॥
बाछल रानी जेवर राना। महादुःखी थे बिन सन्ताना॥
भंगिन ने जब बोली मारी।
સૂખા બગીચા નવલક્ખા।દેખ-દેખ જગ કા મન દુક્ખા
कुछ दिन पीछे साधू आये। चेला चेली संग में लाये।
जेवर राव ने कुआ बनवाया।उद्घाटन जब चाहा॥
ખારી नीर कुए से निकला।राजा रानी का मन पिघला॥
रानी तब ज्योतिषी बुलवाया।कौन पाप मैं पुत्र न पाया॥
कोई उपाय हमको बतलाओ। उन कहा गोरख गुरु मनाओ।
ગુરુ गोरख जो खुश हो जाई।
બાછલ રાની गोरख गुन गावे।नेम धर्म को न बिसरावे॥
करे तपस्या दिन और राती।एक वक्त खाय रूखी छपाती।
कार्तिक माघ में स्नाना। व्रत इकादसी नहीं भुलाना ॥
પૂર્ણમાસી વ્રત નહીં છોડે।દાન પુણ્યથી મુખ્ય નથી
ચેલો के संग गोरख आये।नौलखे में तम्बू तनवाये ॥
मीठा नीर कुए का कीना। सूखा बाग हरा कर दीना।
मेवा फल सब साधु खाए। પોતાના गुरु के गुन को गाये।
औघड़ भिक्षा मांगने आया।બાછલ રાની ને દુઃખ સુનાયે ॥
औघड़ जान ल्यो मन माहीं।तप बल से मुश्किल कुछ नहीं।
रानी होवे मनसा पूर्ण।गुरु शरण है बहुत जरूरी ॥
बारह बरस जपा गुरु नामा।तब गोरख ने मन में जाना।
पुत्र देन की हम भर ली।पूरनमासी निश्चय कर ली ॥
काछल कपटीन गजब गुजारा।ધોખા ગુરુ સંગ કર્યો ॥
बाछल बनकर पुत्र। पायाबहन का दरद जरा नहीं आया
औघड़ गुरु को भेद।तब बाछल ने गूगल पाया॥
કર પરસાદી Google દાના।
લીલી ઘોड़ी और पण्डतानी। लूना दासी ने भी जानी ॥
રાની ગૂગલ માંથી ખાઈ.
नरसिंह पंडित लीला घोड़ा।भज्जु कुतवाल जना रणधीरा ॥
રૂપ વિકટ धर सब ही डरवे। जहरवीर के मन को भावे ॥
भदों कृष्ण जब नौमी आई।जेवरराव की बजी बधाई ॥
विवाह हुआ गूगा भये राना।संगलदीप में बने मेहमाना।
रानी श्रीयल संग परे फेरे।जाहर राज बागड़ का करे॥
अरजन सरजन काछल जाने।गुगा वीर सेवे तने॥
दिल्ली गेडी के काजा।अनंग पाल चढ़े महाराजा ॥
તેણી ઘરી बागड़ सारी।जाहरवीर न हिम्मत हारी॥
अरजन सर्जन जान से मारे।अंगपाल ने शस्त्र डारे ॥
चरण पकड़ पिण्ड छुड़ाया। सिंहकर इमारत माड़ी बनवाया
समान में गूगावीर समाये। गोरख टीला धूनी रमये।
पुण्य वान सेवक वहां आये।तन मन धन से सेवा लाए ॥
મનસા પુરા તેમની હોઈ ।ગુગાવીર કો સુમરે જેઈ ॥
चालीस दिन पढ़े जहर चालीसा।सारे कष्ट हरे जगदीसा॥
दूध पूत उन्हें दे विधाता। कृपा करे गुरु गोरखनाथ ॥