Divine depiction of Shri Brahma Chalisa with Lord Brahma holding a lotus and sacred texts

શ્રી બ્રહ્મા ચાલીસા | શ્રી બ્રહ્મા ચાલીસા

॥ દોહા ॥

જય બ્રહ્મા જય સ્વम्भू, चतुरानन सुखमूल।
કરહુ કૃપા નિજ દાસ પૈ,રહુ સદા અનુકૂળ ॥

तुम सृजक ब्रह्माण्ड के,अज विधि घता नाम।
विश्वविधाता कीजिये,जन पै कृपा ललाम ॥

॥ चौपाई ॥

જય જય કમલાસન જગતમૂલા।રહુ સદા જનપાય અનુકૂળા ॥
રૂપ चतुर्भुज परम सुहावन। तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन।

રક્તवर्ण तव सुभग शरीरा।मस्तक जटाजुट गंभीरा ॥
ताके उपर मुकुट बिराजै।दाढ़ी श्वेत महाछवि छजै॥

श्वेतवस्त्र धारे तुम सुंदर है यज्ञोपवीत अति मनहर ॥
कानन कुण्डल सुभग बिराजहिं।गल मोतीन की माला राजहिं।

चारिहु वेद तुमं प्रगटाये। दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये।
ब्रह्मलोक शुभ धाम तो।अखिल भुवन महँ यश बिस्तारा ॥

અર્ધાંગિનિ તવ છે સાવિત્રી। અપર નામ હિયે ગાયત્રી ॥
सरस्वती तब सुता मनोहर।वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर।

कमलासन पर रहे बिराजे।तुम हरिभक्ति साज सब साजे ॥
क्षीर सिन्धु सोवत सुरभूपा।नाभि कमलभो प्रगत अनूपा ॥

तेहि पर तुमसीन कृपाला।सदा करहु सन्तन प्रतिपाला।
एक बार की कथा प्रचारी। तुम कहें मोह भयेउ मन भारी ॥

કમલાસન લખી કેન્હ બિચારા।
तब तुम कमलनाल गहि लीन्हा।अंत बिलोकन कर प्रण कीन्हा।

કોટિક વર્ષ માતા તે ભાંતી। ભ્રમણ भ्रमत बीते दिन राती ॥
પૈ તમે તાકર અંત ન પાય।

पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा। महापघ यह अति प्राचीन ॥
આકો જન્મ થયો કો કારન।

अखिल भुवन महँ कहँ कोई नहीं।सब कुछ अहै निहित मोहीं ॥
તે નિશ્ચય કરી ગરબ અપયો।

गगन गिरा तब भई गंभीरा। ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा ॥
सकल सृष्टि कर स्वामी जोई।ब्रह्म अनादि अलख है सोई ॥

निज इच्छा इन सबनिर्माये। ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये ॥
सृष्टि के लिए प्रगटे त्रयदेव।सब जग इनकी करिहै सेवा॥

महापघ जो तुम्हारो आसन।ता पै अहै विष्णु को शासन ॥
विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई। तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई ॥

भौटहु जाई विष्णु हितमानी। यह कहि लायब्र भई नभवानी॥
ताहि श्रवण कहि अचरज माना।पुनि चतुरान किन्ह पयाना।

कमल नल धरि नीचे आवा।तहं विष्णु के दर्शन पावा॥
શ્યામ કરતા દેખે સુરભુપા।શ્યામવર્ણ તનુ પરમ અનુપા ॥

સોહત ચતુર્ભુજા અતિસુન્દર।ક્રિટમુકટ રાજત મસ્તક પર ॥
ગલ બજન્તી માલ બિરાજૈ।કોટિ સૂર્યની શોભા લજૈ ॥

शंख चक्र अरु गदा मनोहर।शेष नाग शय्या अति मनहर।
દિવ્યરૂપ લખિ કીન્હ પ્રણામુ। हर्षित भे श्रीपति सुखधामू॥

बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन।तब लक्ष्मी पति कहेउ मुदित मन ॥
ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना। ब्रह्मारूप हम दोउ समाना ॥

तीजे श्री शिवशंकर आहीं। ब्रह्मरूप सब त्रिभुवन मांही।
तुम सों होई सृष्टि विस्तारा।हम पालन करिहं संसारा ॥

शिव संहार करहिं सब केरा।हम तीनहुं कहें काज धनेरा।
અગુણરૂપ શ્રી બ્રહ્મા બખાનહુ।निराकार तिनकहँ तुम जानहु।

हम साकार रुप त्रयदेव।करीहैं सदा ब्रह्म की सेवा।
यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये। परब्रह्म के यश अति गाये ॥

सो सब विदित वेद के नामा।मुक्ति रूप सो परम ललामा ॥
इति विधि प्रभु भो जनम, पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा ॥

नाम पितामह सुंदर पायउ।जड़ चेतन सब कहँ निर्मायेउ।
लीन्ह अनेक बार अवतारा।सुंदर सुयश जगत विस्तारा।

देवदानुज सब तुम कहें ध्यावहिं।मनवांछित तुम सन सब पावहिं।
जो कोउ ध्यान धरै नर नारी।ताकी अस पूजावहु सारी ॥

पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई।तहँ बसहु सदा सुराय॥
कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन।ता कर दूर होई सब दूषण ॥
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