॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधु बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदला।
ગગન સમ અંગ કાંતિ કાલી,રાધિકા ચમક આવી.
लतन में ठाढ़े बनमाली;भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक;ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥
શ્રી गिरिધર કૃષ્ણમુરારીની ॥
આરતી કુંજબિહારી
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ x2
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सोँ सुमन रासि बरसै;बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ગ્વાલિન સંગ;અતુલ રતિ ગોપ કુમારીની ॥
શ્રી गिरिધર કૃષ્ણમુરારીની ॥
આરતી કુંજબિહારી
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ x2
जी ते प्रकट भाई गंगा, कलुष कलि हारिनि श्रीगंगा।
स्मरण ते मोह भंगा;बसी सिव सीस, जटा के बीच,
હરૈ અઘ કીચ;ચરણ છબી શ્રીબનરીની ॥
શ્રી गिरिધર કૃષ્ણમુરારીની ॥
આરતી કુંજબિહારી
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ x2
ચમકતી તેજસ્વી દરિયાઈ રેણુ, બજ રહી वृंदावन बेनू.
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद,
कटत भव फंद;ટેર સન દીન ભીખારીની ॥
શ્રી गिरिધર કૃષ્ણમુરારીની ॥
આરતી કુંજબિહારી
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ x2
આરતી કુંજબિહારી, શ્રી गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
આરતી કુંજબિહારી, શ્રી गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
આરતી કુંજબિહારી
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ x2